टीवी सीरियल “धर्तीपुत्रा नंदिनी” में एक भावनात्मक मोड़ तब आता है जब आकर्ष खुद को शारीरिक रूप से नुकसान पहुँचाने लगता है। दादी, जो उसकी हालत देखकर चिंतित हैं, पूछती हैं, “तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?” आकर्ष अपने दिल के दर्द को बयां करते हुए कहता है, “मेरे और नंदिनी के बीच ऐसा क्यों हो रहा है? मेरे दिल में गहरी चोट लगी है। अश्वार्या और मुन्ना को घर से निकाल दो।”
दादी, भारी मन से, समझाती हैं, “मुन्ना के परिवार ने हमारी बहुत मदद की है; हम उन्हें बाहर नहीं निकाल सकते।” गुस्से से भरे आकर्ष ने फैसला किया कि वह खुद ही घर छोड़ देगा। क्रोध में, वह दीवार पर अपना हाथ मारने की कोशिश करता है, लेकिन तभी नंदिनी वहाँ आ जाती है और उसका हाथ नंदिनी के चेहरे पर लग जाता है। इस घटना से आकर्ष को गहरा अफसोस होता है।
नंदिनी इस गंभीर स्थिति को समझते हुए कहती है, “मैं मुन्ना और अश्वार्या से बात करूँगी और उन्हें घर छोड़ने को कहूँगी।” दादी, यद्यपि अनिच्छा से, सहमति देती हैं, “हाँ, उनसे कह दो। वे बहुत बखेड़ा खड़ा कर रहे हैं।” नंदिनी भारी मन से यह निर्णय सुनाने चली जाती है।
तनाव के इस पल के थमने के बाद, दादी आकर्ष के घायल हाथ की देखभाल करने के लिए मलहम पट्टी करती हैं। यह मार्मिक दृश्य यह दर्शाता है कि कैसे गहरे जुड़े हुए रिश्ते और भावनाएँ इन पात्रों के जीवन को जटिल बनाती हैं, और “धर्तीपुत्रा नंदिनी” एक दिल को छू लेने वाली कहानी बन जाती है जिसमें प्रेम, पीड़ा और धैर्य की अनोखी झलक मिलती है।